बचपन याद आता है - Bachpan Yaad Aata Hai



 बचपन याद आता है 


यादों से मैं उसकी 
कभी निकल नहीं पाता 
बचपन अपना 
बहुत याद आता 
क्या खूब था 
बचपन का जमाना
वो कागज की कश्ती
बारिश का मौसम
पानी में भीग जाना
न किसी बात की चिंता
न पढ़ाई की फिक्र
स्कूल से थक कर चूर 
वापस घर आना 
फिर दोस्तोँ के साथ
खेल में डूब जाना
उन्हें सब-कुछ समझना
फिर उनसे ही उलझना
सभी से था प्यार
किसी से बैर ना
बचपन के खेल भी निराले थे
कभी धूल-मिट्टी से सने
कभी तैयार हो राजा रानी बने
जंजीर, विष-अमृत, आई स्पाई
ताश, लूडो केरम, घर में बैठकर 
कभी सभी ने चिड़ी उड़ाई
खेले खो-खो, रुमाल-झपट्टा
लोहा लक्कड़ किसके घर का पता
बारिश का पानी छत में
इक्कठा रोक कर
छप- छप कर
तैरना और फिसलना
गिर कर उठना फिर
उठ कर संभलना
घंटों घर से दूर रहना
अपनी ही मौज में बहना
पॉकेट मनी बिन कमाए 
मिल जाती
एक रुपये में 
इतनी टॉफ़ी आती
जेब पूरी भर जाती
रात को छत में सोकर
तारे गिनना, सोचना की चाँद
आकाश में टिका कैसे है
बारिश का पानी कहाँ से आता
बादल में पानी रुका कैसे है
माँ की रोटी, गोल कैसे
कोंन भरता रंग पँख में
रंगीन इतना मोर कैसे
फ्रिज में बल्ब जलता
फिर बुझता कैसे है
छूक-छुक इंजन
चलता कैसे है
बचपन मे सवाल तो
और भी कई थे
जिनके उत्तर, कभी
मिले नही थे
घर के प्यारे थे
दादाजी के दुलारे थे
बचपन में उनसे
सुनी कई कहानियाँ थी
कुछ जादूगर, परियों की
कईयों में थे राजा- रानी
बाकी नैतिक, बुद्धिमानी की
सुनते-सुनते कहानी
जब मीठे की याद सताती
बाजार था पास,
रात बारह बजे भी
दुकान खुली मिल जाती
छोटे चाचा रहते थे आगे
मिठाई भागे-भागे लाते
उनकी बदौलत ही
मिठाई खा पाते
दादी जी के हाथ के
लड्डू तो मानो अमृत थे
जब कभी भी
गोंद-मेवे के
लड्डू बनते थे
सबसे पहले भाग्य
मेरे ही खुलते थे
पहले-पहल वो
गणेश जी और
मेरे को ही मिलते थे
ख्वाइशें कभी 
नही रही अधूरी
बिना जिद के ही
हो जाती थी पूरी
नही पड़ता था 
किसी को समझाना
ख़ुशियों का ख़जाना
वो बचपन का जमाना 
छुटियों में जब कभी
सभी भाई-बहनोँ की
इकट्ठी मंडली होती 
क्या शमां होता, मौजमस्ती,
हँसी-ठिठोली होती
रात को छत में
बिस्तरों के लग जाते
लाइन से डिब्बे
हम ही उसके इंजन
हम ही उसके गार्ड होते
बचपन क्यों नही ठहरता
बहुत जल्दी गुजरता है
कब बच्चे से बड़े हो जाते है
कई पचड़ों में पड़ जाते है
बहुत याद आता है
अलमस्त बचपन सुहाना
वो पापा का कंधों पर घुमाना
माता का घुटनों पर
रख कर नहलाना, झुलाना,
सर सहला कर, पीठ थपथपाना
रात में लोरी से सुलाना
अल्सुबह दूध का भोग लगाना 
काश फिर से वो मौसम आ जाए
कोई ऐसी विश मिल जाए, तो
बचपन के दिन लौटा लाना
याद आता है गुजरा
वो बचपन का जमाना।

                    
                                             - सौरभ गोस्वामी


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