पञ्च थे पञ्च में विलीन हो गए ( जरा याद करो क़ुरबानी ) Panch The Panch Me Viren Ho Gaye (Jara Yaad Karo Kurbani)




पञ्च थे पञ्च में विलीन हो गए ( जरा याद करो क़ुरबानी )


पञ्च थे पञ्च में विलीन हो गए 
 ( जरा याद करो क़ुरबानी )



खबर मिली उत्तर कश्मीर में  
कुछ आतंकी बैठे थे  
घर के लोगों को बंधक करके
अकड़ कर ऐसे ऐंठे थे 
मिशन था अपने शेरों का
ये देश नहीं ग़ैरों का 
जो इस मिट्टी को नापाक करे
कसम उस मिट्टी की 
बस अब हम उसको ख़ाक  करे 
बंधको को छुड़ाना
अब उनका था सपना  
एक देश, हम वतन 
वो परिवार था अपना 
वे शेर थे, कर रहे ललकार
सामने थे आदम खोर सियार 
आशुतोष तो स्वयं शिव थे
तांडव मचा रहे थे 
बंधक परिवार को 
आतंकी से बचा रहे थे 
इसमें इनका साथ दे रहे
अनुज थे  छोटे भाई,
मिशन यही प्राण जाएँ 
पर वचन न जाई 
वीरों ने बहादुरी से 
खूब लड़ी लड़ाई 
दिनेश के सूर्य से
अंगारे बरस रहे थे 
दुश्मन भय से बिलख कर  
अपने जीवन को तरस रहे थे 
राजेश भी आ गए थे 
खूब अपने तैश में 
मानो दुश्मन के 
प्राण चुन रहे हो 
यमराज अपने भेष में 
काजी भी अब तो 
गाजी बन 
दुश्मन पर टूटे थे 
दो को तो मर गिराया
इसमें एक हैदर था 
कुछ ही बाकि थे
इस से ज्यादा 
वीरो का कैडर था 
लेकिन होनी को तो 
कुछ और मंजूर था
जिसका डर था 
भारत के शेर क़ुर्बान हो गए
स्वतंत्र अब, बंधक घर था 
देश याद रखेगा शहादत इनकी 
ये मातृभूमि थी जिनकी 
देश के लाल, लाल हो गए 
फिर हमसे एक सवाल कर गए 
जवान पांच जाने कहाँ खो गए  
देश के लाल थे 
तिरंगा ओढ़े चैन की 
नींद सो गए
पञ्च थे पञ्च में विलीन
ब्रह्मलीन हो गए ,
काम ऐसा, 
नाम ऐसा कर गए
देश को ऋणी 
अपने अधीन कर गए। 


                   - सौरभ गोस्वामी

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