नारी शक्ति की अवतारी है - Naari Shakti Ki Avtari Hai
नारी शक्ति की अवतारी है
एक नारी सब पुरुषों पर भारी है
कहावत चरितार्थ कर डाली है
जब- जब उसने
कुछ करने की ठानी है
इनमें अतुलित तेज, दम है
इनके आगे, सभी कम है
एक पुरुष जितना
काम कर सके
उस से कहीं अधिक
उनकी जिम्मेवारी है
वो ये बात जानती हैं
बिन थके, काम करती
हार कहाँ मानती हैं
करती ये शेर की सवारी हैं
नारी, शक्ति की अवतारी है
घर भी घर तब बनते
जब नारी के चरण पड़ते
विषम परिस्थितियाँ करती
अपनी मेहनत से सम
घर की फ़िक्र में
लगी रहती हरदम
लोग क्या कहेंगे
बोल कर बचपन से
डराई जाती है
नारी कहां हारती है
सदा हराई जाती है
सम्मान दो नारियों को
इनके सहारे जग चलता है
आदमी भी जन्म लेकर
नारी की गोद पलता है
बड़े से बड़ा दुःख भी
वह हँस कर सह लेती है
ससम्मान वह
किसी भी हाल में
रह लेती है
कोमल है
कमजोर नहीं
ठान ले तो
इस जैसा
कोई और नहीं
नारी शिक्षित तो
पीढ़ियां तर जाती है
अपने दम पर वो
मुश्किल हालातों से
लड़ जाती है
सावित्री जैसी नारी
यमराज से छीन
सत्यवान, घर लाती है
सम्पति नहीं
सम्मान चहिये
नारी को अपना
स्वाभिमान चाहिये
न जकड़ो उसे कभी
समाज की बेड़ियों में
शेरनी बन निखरेगी
बीच, जंगली भेड़ियों में
स्वतंत्र रखो उसको तो
वो क्या नहीं कर सकती
पंख कटा के कोई ऊँची
उड़ान नहीं भर सकती
जहाँ नारियों का
सम्मान होता है
ईश्वर का भी वहीं
वास होता है
बिन नारी, पुरुष
कहाँ पूरा है
ये ना हो तो
बचपन अधूरा है
जवानी भी है बेरंग,
बुढापे मे कष्ट पूरा है
नारी सुशील, विनम्र
सरल हृदय विराट, सिंधु है
नारी समाज का आइना
बोल कर बचपन से
डराई जाती है
नारी कहां हारती है
सदा हराई जाती है
सम्मान दो नारियों को
इनके सहारे जग चलता है
आदमी भी जन्म लेकर
नारी की गोद पलता है
बड़े से बड़ा दुःख भी
वह हँस कर सह लेती है
ससम्मान वह
किसी भी हाल में
रह लेती है
कोमल है
कमजोर नहीं
ठान ले तो
इस जैसा
कोई और नहीं
नारी शिक्षित तो
पीढ़ियां तर जाती है
अपने दम पर वो
मुश्किल हालातों से
लड़ जाती है
सावित्री जैसी नारी
यमराज से छीन
सत्यवान, घर लाती है
सम्पति नहीं
सम्मान चहिये
नारी को अपना
स्वाभिमान चाहिये
न जकड़ो उसे कभी
समाज की बेड़ियों में
शेरनी बन निखरेगी
बीच, जंगली भेड़ियों में
स्वतंत्र रखो उसको तो
वो क्या नहीं कर सकती
पंख कटा के कोई ऊँची
उड़ान नहीं भर सकती
जहाँ नारियों का
सम्मान होता है
ईश्वर का भी वहीं
वास होता है
बिन नारी, पुरुष
कहाँ पूरा है
ये ना हो तो
बचपन अधूरा है
जवानी भी है बेरंग,
बुढापे मे कष्ट पूरा है
नारी सुशील, विनम्र
सरल हृदय विराट, सिंधु है
नारी समाज का आइना
मुख्य केंद्र बिंदु है
माता, बहन, पत्नी, पुत्री
ये मुख्य स्तंभ चार है
माता, बहन, पत्नी, पुत्री
ये मुख्य स्तंभ चार है
टिका पुरुष का
इन्ही पर आधार है
इन्ही पर आधार है
इनके बिना जीवन की
कल्पना अधूरी है
नारी अति महत्वपूर्ण
बहुत ही जरूरी है।
नारी अति महत्वपूर्ण
बहुत ही जरूरी है।
नारी से जीवन आरम्भ
ये ही सृष्टिकार हैं
हे नारी! तेरी जयकार है
- सौरभ गोस्वामी
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