प्रकृति प्रेरणा देती है - Prakriti Prerna Deti Hai

 प्रकृति प्रेरणा देती है - Prakriti Prerna Deti Hai

  प्रकृति प्रेरणा देती है


प्रकृति तू पवित्र है 
कितना सूंदर तेरा चित्र है 
प्राणी जो तुझसे 
दूर भागते वो 
कितने विचित्र है 
जो इसकी शरण में 
जाकर ठहरता है 
वो सीख कर संभलता है 
एक माँ की तरह 
ये संभालती है 
प्रकृति प्रेरणा देकर 
जीवन संवारती है 
पर्वत हमको सिखाते है
 मनुष्य का चित शांत 
और मन अटल सा हो 
तो उसका जीवन दृढ 
विशाल पर्वत सा होता है 
जैसे पर्वत का काम 
हर मौसम में 
शांत, अटल सा 
खड़ा रहना है 
वैसे ही मनुष्य को 
विपरीत परिस्थितियों में 
धैर्य रूपी रतन 
हमेशा अपने पास 
जड़ा कर रखना है 
नदी सिखाती है 
कल-कल कर बहना 
अपनी मौज में ही रहना 
नदी का पानी  
निर्मल होता है 
पानी, साथ अपने सारी 
गंदगी बहा ले जाता  
मनुष्य भी ऐसा हो 
जो सार सार को ले ले 
थोथा उड़ा देता  
नदी के रास्ते में जो
कंकर पत्थर आता 
वो आकार पा जाता  
मनुष्य भी अपने 
सपने को आकार दे तो 
बंद भाग्य खुल जाता  
खुद सफल हो जाता 
सीखो पेड़ से कुछ, 
धर्म का काम वो करता 
कैसे वो फल को धरता 
खुद फल नहीं खाकर 
पथिक का पेट है भरता 
प्राणी केवल स्वार्थी नहीं 
धर्मार्थी भी होना चाहिए 
पत्ते, पेड़ के, पतझर में 
झरते है, फिर आ जाते है 
दुःख -सुख जीवन में 
आते और चले जाते है 
जो वृक्ष की तरह 
जमीन से उठे 
अपनी परिवार रूपी  
मूल से जुड़े  है 
वो किसी भी तूफ़ान से 
 नहीं घबराते है 
पंछी से सीखो 
उड़ान क्या होती है 
सारा आकाश नाप लेता 
थकान, क्या होती है
चुग्गा, ढूंढ - ढूंढ के लाता 
उसके लिए 
राशन की दुकान 
थोड़े न होती है
तिनका-तिनका 
जमा कर 
बच्चो के लिए 
घोंसला बुनता है 
अपनी मेहनत से 
सर्वश्रेस्ठ चुनता है
काम सब जल्दी होते 
मेहनत अपनाने से 
वरना बाल पूरे 
सफ़ेद हो जाते है 
एक गाड़ी, घर बनाने में 
पवन से सीखो, 
अन्वरत बहते ही रहना 
पीछे न मुड़ के देखना 
सदा आगे को बढ़ते रहना 
सूरज की तरह कैसे
हर रोज सीने में 
आग लगाई जाती है 
जल कर फिर 
चमकना होता है
कभी ना ये छुट्टी लेता
सबको जीवन घुट्टी देता
अनुशाषित जीवन जीता है
इसी लिए ये 
स्वभाव से पिता है
झरना ये सिखाता 
ऊपर से नीचे गिरना
गिर कर फिर उठना
विनम्र सदा बने रहना
कितने भी ऊँचे हो जाओ
नीचे चरणों पर 
आकर ही गिरना 
जमीन से सदा 
जुड़े रहना 
मत करो अति दोहन 
इन नजारों का
मत काटो पेड़
न सीना चीरो
इन पहाड़ो का
न उजाड़ो इन 
मस्त बहारों को 
छोड़ दो जीवन के 
इन सहारों को
नदी, तालाबों को 
न दूषित करो 
हवा को न 
प्रदूषित करो 
जानवर, पंछियों को 
ना कम करो
थोड़ी सी तो शरम करो 
बहुत हो चुका 
बस,अब रहम करो 
प्रकृति हमें संकेत देती 
अब भी संभल जाओ 
सन्देश ये देती है 
अभी भी संज्ञान कर लो 
नहीं तो प्रलय भारी है 
इसे रोकना हमारी ही 
जिम्मेदारी है। 

              

                       - सौरभ गोस्वामी

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