Rakhi AA Rahi Hai-राखी आ रही है
Rakhi AA Rahi Hai-राखी आ रही है
पता है ना पापा
मालूम है न भैयाराखी आ रही है
इस बार दो दिन है
सुनने में आ रही है
अपन इसे कब मना रहे हैं
कौन क्या पहन रहा है
कौन क्या ला रहा है
मम्मी, भाभी क्या पहन रही है
बात करा दो ज़रा मेरी
यही पर है या
छत में टहल रही हैं
भाभी यही हैं राखी में
या अपने पीहर जा रही हैं
बाकी बहनों से भी पूछूँगी
वो क्या ला रही हैं
क्या पहन के सब
राखी में घर आ रही हैं
या फिर ड्रेस कोड रख ले
सब को खूब भाएगी
फोटो भी अच्छी आएगी
मिठाई कोनसी लाऊँ इस बार
वो क्या ला रही हैं
क्या पहन के सब
राखी में घर आ रही हैं
या फिर ड्रेस कोड रख ले
सब को खूब भाएगी
फोटो भी अच्छी आएगी
मिठाई कोनसी लाऊँ इस बार
पसंद क्या है क्या खाओगे
या इस बार कुछ
नया ट्राई करूँ
खा तो पाओगे
मुँह तो नहीं बिचकाओगे
पूछने को बार-बार
राखी पूर्व फ़ोन घुमाती
बेसब्री से रहता इंतजार
राखी शुभ दिन का
शुभ दिन भोर पड़े
सब सज-धज आ जाती
नया ट्राई करूँ
खा तो पाओगे
मुँह तो नहीं बिचकाओगे
पूछने को बार-बार
राखी पूर्व फ़ोन घुमाती
बेसब्री से रहता इंतजार
राखी शुभ दिन का
शुभ दिन भोर पड़े
सब सज-धज आ जाती
ना आ सकी भुआ-बहन की,
डाक वाली राखी भी
सब में शामिल हो जाती
मौली, रोली, अक्षत, दीपक
तरह -तरह की राखियों से
चहक -चहक कर बहने
आरती थाल सजाती
तरह -तरह की राखियों से
चहक -चहक कर बहने
आरती थाल सजाती
दिल से लाख दुआएँ
ऊपर से गाली देती
कहती उम्र लम्बी होती
आसन बैठा, बड़े प्यार से
लम्बी उम्र का लम्बा तिलक
भाई-भाल लगाती
नज़र-आरती उतार
छप्पन भोग सजाती
तुम्हारे लिए ही लाई हूँ
शरमा क्यूँ रहे हो
कम क्यों खा रहे हो
या भाभी जी से
घबरा रहे हो
हँसते हुए कहती
खा ले बेटा खा ले
अभी तो बहुत
जान बाकी है
इसके बात अभी
मीठा पान बाकी है
और ले लो ना प्लीज़
इतना सा क्या खाया है
इनका भोलापन, अपनापन
प्यार-दुलार देख के लगता
इनमें माँ की छायाँ है
इनके लिए तो बस
बाबुल का घर और
रिश्ते सर्वोपरि है
जमीन-जायदाद, ना पैसा
अन्य कोई ना धन-माया है
आसन बैठा, बड़े प्यार से
लम्बी उम्र का लम्बा तिलक
भाई-भाल लगाती
नज़र-आरती उतार
छप्पन भोग सजाती
तुम्हारे लिए ही लाई हूँ
शरमा क्यूँ रहे हो
कम क्यों खा रहे हो
या भाभी जी से
घबरा रहे हो
हँसते हुए कहती
खा ले बेटा खा ले
अभी तो बहुत
जान बाकी है
इसके बात अभी
मीठा पान बाकी है
और ले लो ना प्लीज़
इतना सा क्या खाया है
इनका भोलापन, अपनापन
प्यार-दुलार देख के लगता
इनमें माँ की छायाँ है
इनके लिए तो बस
बाबुल का घर और
रिश्ते सर्वोपरि है
जमीन-जायदाद, ना पैसा
अन्य कोई ना धन-माया है
ये तो बस प्यार देने
प्यार पाने आती हैं
लाखो दुआएं देकर
घर-रिश्तों को सँवार जाती हैं
प्यार पाने आती हैं
लाखो दुआएं देकर
घर-रिश्तों को सँवार जाती हैं
भाई की बाँहों का
होती है श्रृंगार राखी
इसमें छुपा भाई-बहनों का
दुलार-प्यार, सँसार राखी
ये नही केवल होती
रेशम का तार राखी।
होती है श्रृंगार राखी
इसमें छुपा भाई-बहनों का
दुलार-प्यार, सँसार राखी
ये नही केवल होती
रेशम का तार राखी।
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