मारवाड़ी है साहब-Marwadi Hai Sahab
मारवाड़ी है साहब
मारवाड़ी है साहब
जमीन से जुड़े है हम
यहां की मिट्टी में है दम
काम-धंधे में दूरी से भी,
नहीं कोई परहेज है
मिलनसार व शांतिप्रिय
लफड़ों से गुरेज़ है
अपनी संस्कृति को भी
भली-भांति, सहेज रहे है।
सभी धर्मों के त्योहारों में
मिल-जुल कर भाग लेते है,
मंदिर की घंटी, गुरुवाणी,
चर्च, अजान से जाग लेते है।
एक -दूजे के दुःख - दर्द यूँही
आपस मे मिल - बाँट लेते है
पड़ौस में भी बिना लालच
हाल लेने, झांक लेते है।
जितनी प्रदेश की आँधी में
बाहरी हाँफ लेते है,
हम मारवाड़ी है साहब,
उससे कई गुना मिट्टी,
हम यूही फांक लेते है।
जब शहरों में लोग
पानी के भी मोल लेते है,
मेहमाननवाजी में हम,
दूध, दही की नदियाँ
यूँ ही खोल देते है।
अंजान को भी हम
देते सहारा है।
अपने से कुछ भला हो जाये
क्या जाता हमारा है।
कहानी और किस्सो में
हम कंजूस रहते है,
हकीकत में जरूरतमंदों को
हम ही महसूस करते है
खुद में कमी करके
पाई-पाई जोड़ते है
संकट के समय बिना सोचे
खजाने का मुँह खोल देते है
चेरिटी में हमेशा रहते आगे है
ना कर पाएं तो समझें अभागे हैं
अपनी बुद्धि का लोहा मनवाया है
देश-विदेश में परचम लहराया है
सफल व्यापारी, सब पर भारी है
इस बात का बिल्कुल नही गुमान
रहते सरल, इसी लिए पाते सम्मान
मारवाड़ी है साहब,
जमीन से जुड़े है हम,
यहां की मिट्टी में है दम।
- सौरभ गोस्वामी
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