दानवीर कर्ण- द ग्रेट जेनरस Danveer Karn - The Great Generous

दानवीर कर्ण-द ग्रेट जेनरस
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दानवीर कर्ण-द ग्रेट जेनरस


महाभारत समर जब चरम में था
पाण्डव का जन-जन भ्रम में था
जब तक है कर्ण उनके पास
पराजय का है गले में नागपाश
अच्युत ये बात थे जानते 
बिना कवच कुण्डल वारे
हे कौन योद्धा?
इस पूरी सृस्टि में 
जो कर्ण को संघारे 
इंद्र भी थे अपने पुत्र 
अर्जुन के लिए चिंतित 
विप्र रूप धरने में 
नहीं की देर किंचित 
कर्ण के द्वारे पंहुच 
भिक्षा-भिक्षा पुकारें 
जल हाथ ले, तुरन्त
कर्ण ने खंजर से, स्वयं 
कवच-कुण्डल उतारे
एक क्षण भी नही लगा
कर्ण को सोचने में
अपने कवच-कुण्डल
शरीर से नोचने में
ले कवच-कुण्डल इंद्र 
वहां से तुरंत हैं भागे 
लेकिन थे वो अभागे 
हुई तभी आकाश वाणी 
कर्ण को धोखा देकर 
इंद्र तू फस चुका है 
तू भी धसेगा इस धरती में 
तेरा रथ पहले ही धस चुका है
जान बचाने हेतु इंद्र को 
ये विनियोग करना पड़ा 
कवच-कुण्डल के बदले 
अमोघ अश्त्र देना पड़ा 
कर्ण के दान का
सब ने लोहा माना
श्री कृष्ण ने भी 
सर्वश्रेष्ठ दानवीर जाना
पूछा अर्जुन ने क्यों आप 
कर्ण को सर्वश्रेष्ठ कहते 
कहें अच्युत, अर्जुन से 
कहो तो सिद्ध कर दें
फिर दिए 
अर्जुन को 
सोने के दो पर्वत 
गाँव  में बाँटने 
अर्जुन प्रथम हुए अचंभित 
फिर लगे पर्वत बराबर काटने
फिर न बाँटने पर मजबूर हुए 
थक कर बहुत ही चूर हुए 
धीरे से मुस्कुराए त्रिपुरारी
आयी अब कर्ण की बारी 
कर्ण ने पल भर भी 
देर न लगाई 
फ़ैसला लेने में
गाँव वालों को 
पूरा पर्वत देने में 
ये सोना है गाँव वालों का 
दिमाग में गांठ बांध लें
गाँव वाले ही इसे अब 
आपस में मिल-बाँट लें
कहें दामोदर हे अर्जुन !
दान में कर्ण अपना 
हित नहीं खोजता 
केवल और केवल 
पर हित है सोचता 
इसी लिए वो ज्येष्ठ है  
दानवीर कर्ण सर्वश्रेष्ठ है।

               
                     - सौरभ गोस्वामी

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