कर्ण के महान दान- जीवन दान Karn Ke Mahaan Daan - Jeevan Daan

कर्ण के महान दान - जीवन दान


कर्ण के महान दान - जीवन दान



इंद्रप्रस्थ का राज मिलने के बाद
युधिष्ठिर दान करके दानी कहलाने लगे
पांडव इस बात से अभिमानी होने लगे
भीम और अर्जुन, युधिष्ठिर की गाथा
अच्युत सामने गाने लगे, सुनाने लगे
बोले अच्युत, युधिष्ठिर के कम अभी करम है
सर्वश्रेष्ठ दानवीर एक मात्र कर्ण है
समय आने पर इसे सिद्ध करूँगा
समय बीता, एक विप्र युधिष्ठर के दरबार आया
चंदन की लकड़ियाँ यज्ञ के लिए चाहिए
अपने आने का प्रयोजन बताया, 
सुनते ही युधिस्ठिर बोले, एकआदेश निकाला जाए
विप्र को भंडार से दान दिलाया जाए,
आप की बात तो सही है लेकिन महाराज 
भण्डार में लकड़ियों की उपलब्धता नही है, 
ये सुनते ही युधिष्ठर ने अर्जुन, भीम को दौड़ाया
चंदन की लकड़ियाँ लाने को दोहराया
लेकिन वो भी असफल रहे लकड़ियाँ लाने में
विप्र को दान दिलवाने में, फ़िर बोले अच्युत
एक ही जगह है जहॉं दान पा सकते हो
आप कर्ण की शरण अब जा सकते हो
भीम, अर्जुन अब यह विधि कर लो
मेरी बात सिद्ध करने, कर्ण को परखने
भेष बदल कर मेरे और विप्र के साथ चल लो
कर्ण से भी विप्र ने वही फरियाद करी
चंदन की लकड़ियाँ चाहिये
यहीं मांग, कर्ण समक्ष धरी
कर्ण ने भी बहुत ढुंढवाया पर
अपने को असहाय पाया
फिर उठे, दिमाग मे कुछ विचार आये
महल के सारे खिड़की-दरवाजों से
चन्दन की लकड़ियाँ, स्वयं काट लाये, 
फिर बोले है विप्र! योग्य लकड़ियाँ छाँट लें
हमारा सारथी घर तक छोड़ देगा
कृपया लकड़ियों के गठ्ठर बांध लें
भीम, अर्जुन कृष्ण की और ताकने लगे
कृष्ण भी अपनी बात सिद्ध होते देख
मंद-मंद मुस्कुराने लगे, फिर पलट कर बोले
साधारण 
परिस्थितियों
 में दान देना
कोई कार्य नही है महान
विषम परिस्थियों में सर्वस्व
त्यागना ही सर्वश्रेष्ठ दान
युधिष्ठिर ने ये काम न करके,
कर्ण ने यह काम है किया
इसी लिए मेने दान की महानता में
सर्वप्रथम उसी का नाम लिया।
कवच-कुंडल दान दे दिए
जान-जोखिम डाल के
झुका ना सका कोई उसके भाल को
आँख मिलाके देखा जिसने, 
काल के कपाल को
माता कुंती को भी ममता का मोल दिया
दानस्वरूप चारों भाइयों का जीवन छोड़ दिया
विप्र रूप धरे विष्णु को भी दान में,
कर्ण नेअपना यौवन तक वारा है
ऐसा वीर छल से, हार के भी नही हारा है
महाभारत समर में जब कर्ण मरणासन्न थे
अच्युत के कहने पर अर्जुन ज्ञान लेने
युद्धभूमि में कर्ण के सम्मुख आसन्न थे, तभी
अच्युत को कर्ण की परीक्षा लेने की सूझी
मरणासन्न है ये, क्या बची अब इनकी पूंजी
भगवन विप्र रूप धर आये और बोले बतलाएं
सुना है आपकी दानशीलता के बारे में
मुझे भी उपहार स्वरूप सोना देते जाएं
कर्ण पड़ गए सोच में, सोने की खोज में
याद आया मुख में सोने का दाँत जड़ा है
विप्र के काम आ सके, कुछ तो सोना पड़ा है
विनम्र होकर विप्र से बोले, हाथ जोड़ के,
सोना लें कर जाएं मेरे दाँत तोड़ के
है राजन! आप की चिंता करूँगा,
विप्र हूँ मैं, हिंसा नही करूँगा
कर्ण ने पास पड़े पत्थर से
तोड़ लिए स्वयं अपने ही दाँत
है विप्रवर! ले जाएं सोना अपने साथ
है राजन! खराब नही करने मुझे अपने कर्म है
खून से सना सोना लेना, मेरा नही धर्म है
फिर तो कर्ण ने ध्यान लगा, आकाश में बाण चलाया
खून से सने दाँत को बारिश करके धुलवाया
विप्र को दान देने योग्य, सोना बनाया, 
है कौन? इस पूरी सृष्टि में कर्ण सम दानी, 
बिना अभिमान के, जीवन तक दे दिया दान में
कोई नही दूर-दूर तक उनका सानी
पूरे ब्रह्माण्ड में केवल कर्ण ही महादानी


                                           - सौरभ गोस्वामी


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